Monday, February 15, 2016

अरमानों की उड़ान...

मदमस्त हवा के झोंकों का नशा जो है छाया
तो बेखुदी का ये आलम है, जहान की न खबर है
क्षितिज पर नीले आसमान में पिघलता जो समुन्दर है
तो अपलक देख रहीं आँखें, भागते वक़्त का न होश है 
बीते लम्हों की याद में खोया मन
ढूंढ रहा ज़िन्दगी के फलसफे है
इस सुहाने मौसम में यूँ गुमसुम है दिल क्यूँ
क्या खोया इसने, गम है इसे क्यूँ
कुछ सन्नाटे तो हैं सबका हिस्सा
बीत गया जो वो है कल का किस्सा...

दिल को संकरे दायरों में बांधें रखा है क्यूँ तुमने
अरमानों को जेहन में समेटे रखा है क्यूँ तुमने
ये जो पल हैं आज और अभी हैं
थाम लो इन्हें, पहले इसके की ये हो जाएं गुम
हसरतों को पिंजरे से करो आज़ाद
और मिलाने दो नीले अम्बर से साज़
रखोगे बुलंद जो हौसले
और हिम्मत से लोगे फैसले
कायनात भी करेगी साज़िश
कि कामयाबी करे खुद तुम्हारे पते की गुज़ारिश...

ज़िन्दगी में कभी धूप तो कभी बरसात है
बुझे न कभी उम्मीद की शमां बस यही दुआ है
किस्मत के थपेड़ों से जूझकर ही तो
मिलेगा जीवन का समुन्दर नील गगन से
हमसफ़र का इंतज़ार न करो निकलने से पहले
मिल ही जायेगा वो तुम्हें चलते-चलते
साथी के साथ से डगर हो जाती है कुछ सुगम
पर सफर तन्हा भी यूँ कुछ बुरा नहीं
मंज़िल अपनी देर-सबेर पहुँच ही जाओगे, रफ्ता रफ्ता भटक कर ही सही
गुमराह तो वो लोग हैं, जो दूरियों के डर से घर से निकले ही नहीं...

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