आँखों में सपने
संजोए, मन में
संकल्प लिए
दिल पर पत्थर
रख घर से
हम चल दिए
कुछ कर गुजरने
की चाहत में
अनजाने सफर पर
निकल पड़े...
रेगिस्तान की मृग-मरीचिका समान
सफलता बस थोड़ी
दूर नज़र आती
है
समीप पहुंचते ही उतनी
दूर और चली
जाती है
सुध-बुध गवाँए
प्यासे की तरह
अब भी पीछे
भाग रहे हैं
यही है अपने
जीने का सबब,
खुद को समझा
रहे हैं
साहिल की लहरों
को चीरती
बरखा, तूफानों को झेलती
किनारा ढूंढ़ती जीवन की
ये कश्ती
है अग्रसर पल-पल
प्रतिपल...
सहयात्रियों
को आगे निकलता
देख
हिम्मत है टूटती,
मनोबल फिर डोलता
संदेह होता अपनी
काबिलियत पर
व्यर्थ प्रतीत होता परिश्रम,
जीवन लगता मायाजाल
है...
मगर यारों ! जीवन है
लम्बी दूरी की
दौड़
यहाँ थकना-हारना
है मना
कल फिर होगी
सुबह
होगा सूरज का
आविर्भाव नया
दिनकर की रश्मियों
के तेज से
ऊर्जा का होगा
संचार नया
जीवन रण पुनः
आरम्भ होगा
कल की पराजय
का न कोई
दुष्परिणाम होगा...
करें हम शंखनाद,
संभालें रथ की
कमान
भेदने को चक्रव्यूह
हो जाएं तैयार
मनोबल है अपना
कवच और श्रम
तलवार
चुनौती है प्रतिद्वंदी
और डर उसका
हथियार
बनें कुरुक्षेत्र के हम
अर्जुन
हो जाएं नतमस्तक
सब जन
निराशा-हताशा के बादलों
को चीरते
कुछ गिरते, कुछ संभलते
अंजानी डगर पर
हम डटे रहें
लें शपथ! पार
करेंगे ये अग्निपथ,
पार करेंगे ये
अग्निपथ...
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